॥ अथ पंचमोऽध्यायः ॥

॥ चौपाइ ॥

तिन दिन प्रभु रहला ओ देश । कन्द मूल फल भोजन बेश ॥ 

कहलनि कौशिक कथा पुराण । पुरुष पुराण सहज सब जान || 

चारिम दिन कहलनि ओ राम । नव उत्सव मिथिलाधिप-धाम ॥ 

तिरहुति सन नहि दोसर देश । विज्ञानी मानी मिथिलेश ॥ 

थापित शंकर धनु तहि ठाम । अपनेहुँ काँ देखक थिक राम ॥ 

देख तनि मर्य्यादा जाय । जनक नृपति सौँ पूजा पाय || 

शुनि मुनि संग चलि लछमन राम । गंगा उतरि विदेहा नाम ॥ 

दिव्य फूल फल भल तरु पाँति । खग मृग रहिय भेल दिन राति ॥ 

मुनि केँ पुछलनि से देखि राम । एहि आश्रमक कहू की नाम ॥

अति आह्लादित करइछ चित्त । पुण्याश्रम की एहन  निमित्त ॥

विश्वामित्र कहल से शूनि ।  आश्रम छल छथि गौतम मूनि ॥ 

तप-बल सौँ तेजस्वी भेल । कन्या तनिकाँ ब्रह्मा देल ॥ 

नाम अहल्या तेहनि न आन । कयलनि विधि वनिता निर्म्मान ॥


|| रूपक दण्डक ||

न्याय सूत्र - कर्त्ता गौतम मुनि, ब्रह्मचर्य व्रतधारी, बड़ भारी । 

कोनहु लोक एहनि के सुन्दरि, तनिक अहल्या नारी, सुकुमारी ॥ 

वासव काम-विवश रस- लम्पट, रूप तनिक मन धारी, छलकारी ॥ 

गौतम आश्रम राति रहथि नहि, तिय पातिव्रत टारी, अव भारी ॥


॥ तीरभुक्ति-सङ गीतानुसारेण स्मरसन्दीपन कोडार छन्दः ॥

धाता लिखल जेहन भाल ।

से फल भेलैँ से पथ गेलैँ क्रमहिं कालेँ काल ।।

गमहि गमहि गौतम जखन गेहक निकट धाओल । 

परक कारन नरक परक तरक तेहन पाओल || 

देखल चरित बुझल दुरित दारक  मारक दोषे । 

शान्तिक पटल सकल हटल सटल अटल रोपे ॥


॥ रूपक दण्डक ॥

अति अनर्थ कर्त्ता कह के तोँ, शून्याश्रम सञ्चारी, हठकारी । 

क्षणमे दुष्ट भस्म हम कय देब, हमर रूप की धारी, छल भारी ॥ 

कहल इन्द्र अपराध कयल हम, कामक भेलहुँ दासे, मति नाशे । 

विधिक पुत्र ! करु क्षमा इन्द्र हम, सकल लोकमे हासे, अति, त्रासे ॥


॥ हरिपद ॥

इन्द्रक वचन शुनल जेहि खन मुनि कोप लाल बड़ आँखि । 

भग हजार टा तनमे होयतहु उठला गौतम भाखि ॥ 

आश्रम जाय अहल्या देखल कपइत जोड़ल हाथ । 

मिथ्यालाप शाप डर कयल न रहल उपाय न लाथ ॥


॥ चैपाई ॥

गौतम कहल रहह गय जाय । पापिनि पाथर भितर समाय  ॥

जल जनु पीबह अन्न न खाह । आश्रम छाड़ि कतहु जनु जाह ॥ 

जन्तु मात्र सौँ आश्रम हीन । होएतहु यावत पातक क्षीण ॥ 

दिवारात्रि तप करह सहिष्णु । हृदय ध्यान परमेश्वर विष्णु ॥ 

राम राम मन मनसे कहब | बहुत सहस वत्सर एत रहब ॥ 

जखन होयत रामक अवतार | हरण हेतु अवनिक सभ भार ॥ 

सानुज से एहि आश्रम आबि । तोर भल करता ई अछि भावि ॥ 

पाथर परसहि रामक चरण | तोहरा अभय दुरितचय-हरण ॥ 

तनिकर पूजन भक्ति प्रणाम । लोचन- गोचर प्रभुवर राम ॥

सेवा हमर पूर्व्व सम करब । कोक समान संग सञ्चर ॥ 

ई कहि गेला मुनि हिमवान । आश्रम भै गेल आनक आन ॥ 

गेलथिनि गौतम एतहि राखि ।  हिनका दोसर देखथि न आँखि ॥

अपनैक चरणक चाहथि धूरि । हिनकर दुःख - निकर करु दूरि ॥ 

कौशिक रामक धय लेल हाथ । करु उद्धार देव रघुनाथ ॥ 

विधि- तनयाक विपत्ति तति-हरण । परस भेल तहि पाथर चरण ॥ 

अपन रूप पाओल तहि ठाम । तनिकर राम कयल परनाम ॥ 

दशरथ - तनय राम थिक नाम । ब्रह्म-पुत्रि अयलहुँ एहिठाम || 

से देखल पीताम्बर वीर । लक्ष्मण सहित हाथ धनु तीर ॥ 

स्मित मुख-पंकज पंकज-नयन । श्रीवत्सांकित शोभा-अयन || 

वर - माणिक्य - कान्ति श्रीराम । देखि अहल्या आनन्द-धाम ॥ 

हर्ष लेल लोचन बड़ गोट । तन रोमाञ्च प्रपञ्च न छोट ॥ 

मन पड़ि आएल गौतम कहल । कर लगली परमेश्वर टहल ॥

कहत बाढ़ विपुल रस्व - भंग । हर्ष न अटय अहल्या  अंग ॥


॥ गीत ||

हमर गति अपनैँ सौँ के आनअ । 

करुणागार दीन-प्रति- पालक रामचन्द्र भगवान । 

पिता विधाता घुरि नहि तकलनि पति-मति भेलहु पषान॥

सुरपति कुमति विदित भेल कतए न हम अबला की ज्ञान । 

जन्तु मात्र सौँ वज्जित आश्रम नहि भोजन जल पान ॥ 

वरष हजार बहुत एत गत भेल रामचरण मे ध्यान । 

सगुण ब्रह्म अपनैकाँ देखल निर्गुण मन अनुमान ॥ 

चन्द्र सुकवि भन लाभ एहन सन त्रिभुवन शुनल न कान ॥


॥ गीत पुनः ॥

हमर सन भाग्यवन्ति के नारि। 

निर्गुण ब्रह्म सगुण बनि अएलहुँ अपनहि सौँ असुरारि ॥ 

अपनेक चरण सरोज सौँ सुरसरि उतपति पावन वारि । 

सकलो तीर्थक मूल चरण से देखल आँखि पसारि ॥ 

जे चरणक धूली लय घन्धित रहथि देव त्रिपुरारि । 

से धूलीक प्रकट फल पाओल कर्म्म शुभाशुभ जारि ॥

रामभन्द्र कहलनि सुनु शुभमति अहँक हाथ फल चारि 

हमर भकि अहँकाँ से होएत सकल सिद्धि देनिहारि ॥


॥ सङ्गीते सूहव नाम छन्दः ॥

श्रीमन्नारायण विष्णो ।

शापादुद्धर शापादुद्धर दुद्धरै दनुज विष्णो ॥ 

विधेर्व्विधे दयानिधे विधेरहं कन्या । 

तपस्विनी मनस्विनी यशस्विनी धन्यधन ॥ 

आसं दैवाद्दुराचारा मारद्वारा जाता । 

कष्टस्थाने भवानेव प्रभो विभो त्राता ॥

इति श्री मैथिल चन्द्र कवि विरचिते मिथिला भाषा - रामायणे पञ्चमोऽध्यायः ।